Thursday, 3 November 2022

Kakatiya Rudreshwara temple camp

                   हम सब अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानते है की हमे world UNESCO's organised kakatiya Rudreshwara temple camp के लिए संपुर्ण भारत के विभिन्न राज्यों मे से चुना गया, और कॅम्प का हिस्सा होने का भाग्य मिला,और सबसे महत्त्वपुर्ण अपने जीवन में चल रही बहुत सी परेशानियों की गाडीयों को एक स्टेशन मिला.. हर राज्य से एक अजनबी मिला, और दोस्त बनके हथेली मुस्कुराहटों से भर ,अपनी पुरानी जिंदगी मे नया होकर चला गया। और इस कॅम्प कि वजह से मानो हर राज्य में एक ऐसा अपना है, जिससे दिलों का कोई नाता है। 




            हमे अकसर सफर पसंद आते है, पर वो कोई सफर नही था, वो तो एक रास्ता था, ऐसा रास्ता जो कही पहुँचता नही था,उसपे बस चलना था, चलते रहना था,रास्ता वही था लेकिन हर दिन कुछ नया सिखाता था और सच बताऊँ तो हम जब भी किसी सफर मे जाते है, तो वापसी की टिकट साथ मे करते है, लेकिन पता नहीं पालमपेट से वापिस आते समय हमें लगा की, हम कोई सफर ख़तम नही बल्कि बहुत से सफ़र शुरू करके जा रहे है।



            काकतीय साम्राज्य के पवित्र भूमि पर, मंदिरों की छाँव में, ऊँची ऊँची पहाडों में, शीतल सी हवा बहती थी, और उसमें हम सबकी एक रंगीन जिंदगी हुआ करती थी। सुबह मंदिरों में ध्यान, दिनभर मंदिरों का ज्ञान, और संध्या मंदिरों से ज्ञान प्राप्त होता था। बस यही दुनिया थी हमारी.. हर एक दिन धर्म, प्राचीन धरोहर, संस्कृति ,परंपरा ,परमात्मा, इतिहास ,अध्यात्म, कला विधीओं से भरा हुआ था। कई अनुभव मिले, कितना सिखा, कितनों ने सिखाया, सिखाने के लिए केवल एक क्लास और एक प्रोफेसर ही नही थे ,बल्कि परमात्मा की हर बनाई चीज हमे सिखाने के लिए मानों जुटी रहती। खुले आसमान, खुली सडके, ऊँची पहाडों ,गावँ के लोग, उनका जीवन इन वादियो ने जो सिखाया वह बडा़ रोचक था। आज तक के सफर में यही वो दिन थे जहाँ मै हर दिन बहुत खुश हुआ करती, इसका कारण मात्र यही वो जिंदगी थी जो मैं हमेशा से जीना चाहती थी, जहा ट्राफिक का शोर ना हो, शहरो की भागदौड ना हो ,बस हर तरफ केवल शांति और आध्यात्मिक वातावरण था। 



      हमें उस पल किसी घर की, पिछली जिंदगी की , यहाँ तक की किसी की भी याद नही आ रही थी। हम बस वह लम्हे जी रहे थे, पलों को यादों में पिरोए जा रहे थे,प्राचीन धरोहर परंपरा समझ रहे थे, मानों इतिहास में ही जी रहे, सच मे हम बस जिंदगी दिल से दिल तक जी रहे थे.. वहाँ के पुजारियों का सफेद रंग का तिलक लगाना , सुबह मंत्रो के स्वर सुनना, छलाँग लगाकर गेट से कूदना, मंदिरो में प्रवेश कर सबको जगाना, पुजा ध्यान करना,सभामंडप के बीच लेटकर छत पर उकेरे मुर्तीयों को घंटो तक देखते रहना,अलंकृत स्तंभो कें बीच बैठकर भगवान शिवशंकर जी को  देखते रहना, मानों स्वर्ग की अनुभुती समान था। दोस्तों के साथ खिलखिलाहटे, खिचाई करना, शोर मचाना, चिडाना,पागलपंती करना, यह तो होना ही चाहिए, अगर ऐसे ना हो, तो वह दोस्ती ही नही। 



        हम वहाँ के इडली सांबर को कभी नही भूल सकते, क्योकि मेरे सारे साथी उत्तर भारत से थे और पहली बार वे दक्षिण भारत में आए,उनका एक साल का इडली सांबर वहीं हो गया। सोच लों इतना खिलाया था, की वे अब इडली को हाथ तक न लगाए। मंदिर से रिसाॅर्ट तक बस की सुविधा होते हुए भी हम पैदल चलना ज्यादा पसंद करते थे ,क्योकि रास्ते में उँची पहाडें,प्राचीन मंदिरें और एक छोटा सा झरना भी था,  चलते वक्त सामने बड़े अक्षरों में लिखा रामप्पा लेक हररोज पढना पसन्द था हमें। उस रास्ते पर अक्सर शांति होती थी,इस व्यस्त दुनिया से दूर था वो इलाका, बेहद खास था वह रास्ता जो हमे हमसे रामाप्पा तक पहुँचाया करता था। उस शांति में मानो हर तरफ से कुछ हमें मिलना चाह रहा था,हमसे जुडना चाहता था, सच में कितना विश्वास था उन लोगो की आखों में, अपने परमात्मा के प्रति, कितना आदर था कला के प्रति, अपने प्राचीन धरोहर के प्रति और एक मानवता के प्रति। अकसर मुझे ऐसे ही लोगों में रहना पसंद है ,जो अपने इतिहास, धर्म, धरोहर और ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हो। ऐसे ही लोगों का, प्रकृति का साथ मिला और यह सफर बेहद खास हो गया..

✍️Shrimala K. G. 
✍️Nitin Beriwal

No comments:

Post a Comment

स्थपती

 स्थपती व्यंकटेश्वरा अप्पा..  " कर्तृत्व नेहमीच शब्दांपेक्षा चेहरा अधिक सांगते "..  याची जाणीव होणारे काही क्षण... मी वाचलेलं होत,...